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"हवा में होगी गन्ध दहकते हुए गुलाब की! तभी तो घन-गरज सुनायी देगी इंक़्लाब की!! जियेंगे हां जियेंगे हम, तब तलक ये ज़िन्दगी! जब तलक न होगी गरम, किरन माहताब की ...